135+ Akbar Allahabadi की शायरी (shayari), कोट्स (Quotes) और 2 Line शायरी
अकबर इलाहाबादी (Akbar Allahabadi) का असली नाम ” सैयद अकबर हुसैन ” था | इनकी ज्यादातर शायरी (shayari) हमारे स्वतंत्रता संग्राम में भारत को स्वतंत्र कराने में काफी सहयोग प्रदान किया | अकबर इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर 1946 को प्रयागराज शहर के उत्तर प्रदेश में हुआ था | अकबर इलाहाबादी को हम एक प्रसिद्ध शायर ,गजल, नजम और विभिन्न क्षेत्रों में लेखन की कला से हम सभी को रूबरू कराया | अकबर इलाहाबादी की मृत्यु 15 फरवरी 1921 को प्रयागराज में हुआ था | अकबर इलाहाबादी के ज्यादातर शायरी में देश प्रेम और प्यार, सद्भावना देखने को मिलता है |
डाल दे जान मआ’नी में वो उर्दू ये है
करवटें लेने लगे तब्अ वो पहलू ये है
डाल दे जान मआ’नी में वो उर्दू ये है
करवटें लेने लगे तब्अ वो पहलू ये है
कुछ तर्ज-ए-सीताम भी है कुछ अंदाज-ए-वफा भी,
खुलता नहीं हाल उन की तबीयत का ज़रा भी ….
इस गुलिस्ताँ में बहुत कलियाँ मुझे तड़पा गईं
क्यूँ लगी थीं शाख़ में क्यूँ बे-खिले मुरझा गईं
डिनर से तुम को फ़ुर्सत कम यहाँ फ़ाक़े से कम ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती
ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी
इक ना-शुनीदा उफ़ हैं इक आह-ए-बे-असर हैं
इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
वस्ल का दिल से मिरे अरमान रुख़्सत हो गया
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
आँख उन से जो मिलती है तो क्या क्या नहीं होता
आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है
अब तो है इश्क-ए-बुतान में जिंदागानी का मजा,
जेबी खुदा का समाना होगा तो देखा जाएगा…,
दाल दे जान मानी में वो उर्दू ये है,
करवातेन लेने लगे तबा वो पहेली ये है…,
इन को क्या काम है मुरव्वत से अपनी रुख़ से ये मुँह न मोड़ेंगे
जान शायद फ़रिश्ते छोड़ भी दें डॉक्टर फ़ीस को न छोड़ेंगे
आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम
हम तो ए.बी में रहे अग़्यार बी.ए हो गए
जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बोतलें इकट्ठी
मुल्ला की दौड़ मस्जिद ‘अकबर’ की दौड़ भट्टी
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
हुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख
अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा
जब ख़ुदा का सामना होगा तो देखा जाएगा
जल्वा न हो मअ’नी का तो सूरत का असर क्या
बुलबुल गुल-ए-तस्वीर का शैदा नहीं होता
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
ज़ालिम में और इक बात है इस सब के सिवा भी
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर
अगर मज़हब ख़लल-अंदाज़ है मुल्की मक़ासिद में
तो शैख़ ओ बरहमन पिन्हाँ रहें दैर ओ मसाजिद में
अकबर इलाहाबादी की ग़ज़लें
जवानी की है आमद शर्म से झुक सकती हैं आँखें
मगर सीने का फ़ित्ना रुक नहीं सकता उभरने से
तालुक आशिक-ओ-मशुक का तो लुत्फ रख रखता था,
माजे अब वो कहां बाकी रहे बीवी मियां हो कर…..,
असर ये तेरे अनफास-ए-मसिहायी का है “अकबर”,
इलाहाबाद से लंगडा चला लाहौर तक पहुंचा …..,
किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते
जिस तरफ़ उठ गई हैं आहें हैं
चश्म-ए-बद-दूर क्या निगाहें हैं
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
कुछ इलाहाबाद में सामाँ नहीं बहबूद के
याँ धरा क्या है ब-जुज़ अकबर के और अमरूद के
आई होगी किसी को हिज्र मो मुत,
मुझे तो निंद भी नहीं आती…
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर
मुसलमानी में ताक़त ख़ून ही बहने से आती है
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
जो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँकर हुआ
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
कुछ नहीं कार-ए-फ़लक हादसा-पाशी के सिवा
फ़ल्सफ़ा कुछ नहीं अल्फ़ाज़-तराशी के सिवा
ख़िलाफ़-ए-शरअ कभी शैख़ थूकता भी नहीं
मगर अंधेरे उजाले में चूकता भी नहीं
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है ‘अकबर’
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुँचा
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ ‘अकबर’
यही वो दर है कि ज़िल्लत नहीं सवाल के बा’द
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी
खुलता नहीं हाल उन की तबीअत का ज़रा भी
तअल्लुक़ आशिक़ ओ माशूक़ का तो लुत्फ़ रखता था
मज़े अब वो कहाँ बाक़ी रहे बीवी मियाँ हो कर
कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया
जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया
तहसीन के लायक़ तिरा हर शेर है ‘अकबर’
अहबाब करें बज़्म में अब वाह कहाँ तक
क्या पूछते हो ‘अकबर’-ए-शोरीदा-सर का हाल
ख़ुफ़िया पुलिस से पूछ रहा है कमर का हाल
तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से
होता है शगुफ़्ता मगर इतना नहीं होता
कॉलेज से आ रही है सदा पास पास की
ओहदों से आ रही है सदा दूर दूर की
तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर
जल्वा बुतों का देख के नीयत बदल गई
क्या वो ख़्वाहिश कि जिसे दिल भी समझता हो हक़ीर
आरज़ू वो है जो सीने में रहे नाज़ के साथ
तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
दूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
पारसाई पर भी आफ़त आ गई
तुम नाक चढ़ाते हो मिरी बात पे ऐ शैख़
खींचूँगी किसी रोज़ मैं अब कान तुम्हारे
फिर गई आप के दो दिनों में तबीयत कैसी,
ये वफ़ा कैसी थी साहब ये मुरव्वत कैसी..
जलवा ना हो माईनी का तो सूरत का असर क्या,
बुलबुल गुल-ए-तस्वीर का शायद नहीं होता…
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
तुम्हारे वाज़ में तासीर तो है हज़रत-ए-वाइज़
असर लेकिन निगाह-ए-नाज़ का भी कम नहीं होता
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है
ज़रूरी चीज़ है इक तजरबा भी ज़िंदगानी में
तुझे ये डिग्रियाँ बूढ़ों का हम-सिन कर नहीं सकतीं
उन्हें भी जोश-ए-उल्फ़त हो तो लुत्फ़ उट्ठे मोहब्बत का
हमीं दिन-रात अगर तड़पे तो फिर इस में मज़ा क्या है
41+ 2 Line Shayari Akbar Allahabadi Quotes !
किस नाज़ से कहते हैं वो झुंजला के शब-ए-वस्ल,
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते…
हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है…
जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बोतलें इकट्ठी
मुल्ला की दौड़ मस्जिद ‘अकबर’ की दौड़ भट्टी..
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है…
दस्तूर मोहब्बत का सिखाया नहीं जाता
ये ऐसा सबक़ है जो पढ़ाया नहीं जाता
आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल के निकलने नहीं देते
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है ‘अकबर’
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुंचा
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है
ख़बर देती है याद करता है कोई
जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है ‘अकबर’
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुंच
या इलाहाबाद में रहिए जहां संगम भी हो
या बनारस में जहां हर घाट पर सैलाब है
इश्क़ के इज़हार में…
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है
तू मुस्कुराती रहे है ये आरज़ू मेरी
मैं तेरी आंखों को बरसात दे नहीं सकता
मालूम ही है आप को बंदे का ऐडरेस
सीधे इलाहाबाद मेरे नाम भेजिए
तीन त्रिबेनी हैं दो आंखें…
तीन त्रिबेनी हैं दो आंखें मिरी
अब इलाहाबाद भी पंजाब है
दस्तूर मोहब्बत का सिखाया नहीं जाता
ये ऐसा सबक़ है जो पढ़ाया नहीं जाता
आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल के निकलने नहीं देते
ये मेरी तमन्ना है…
ये मेरी तमन्ना है प्यासों के मैं काम आऊं
यारब मिरी मिट्टी को पैमाना बना देना
ख़बर देती है याद करता है कोई
जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते
होंटों पर इक बार सजा कर अपने होंट
उस के बाद न बातें करना सो जाना
ख़बर देती है याद करता है कोई…
ख़बर देती है याद करता है कोई
जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते
चंद लम्हों को सही था साथ में रहना बहुत
एक बस तेरे न होने से है सन्नाटा बहुत
न रहे तुम जो हमारे तो सहारा न रहा
कोई दुनिया-ए-मोहब्बत में हमारा न रहा
आईना देख कर …
आईना देख कर न तो शीशे को देख कर
हैरान दिल है आप के चेहरे को देख कर
मेरा ख़त लिख के बुलाना उसे अच्छा न लगा
इस तरह प्यार जताना उसे अच्छा न लगा
आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
कहा आशिक़ से वाक़िफ़ हो….
कहा आशिक़ से वाक़िफ़ हो तो फ़रमाया नहीं वाक़िफ़
मगर हाँ इस तरफ़ से एक ना-महरम निकलता है
अब भी आ जाते तो रह जाती हमारी ज़िंदगी
बाद मरने के अगर ख़त का जवाब आया तो क्या
तेरी निगाह बनी आइना मेरी ख़ातिर
मैं ख़ुद को देख के कल रात मुस्कुराने लगा
न हो या रब ऐसी तबीअत
न हो या रब ऐसी तबीअत किसी की
कि हँस हँस के देखे मुसीबत किसी की
मौत की सुन के ख़बर प्यार जताने आए
रूठने दुनिया से जो हम यार मनाने आए
चंद लम्हों को सही था साथ में रहना बहुत
एक बस तेरे न होने से है सन्नाटा बहुत
न रहे तुम जो हमारे तो सहारा न रहा
कोई दुनिया-ए-मोहब्बत में हमारा न रहा
आईना देख कर …
आईना देख कर न तो शीशे को देख कर
हैरान दिल है आप के चेहरे को देख कर
मेरा ख़त लिख के बुलाना उसे अच्छा न लगा
इस तरह प्यार जताना उसे अच्छा न लगा
आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
तू मुस्कुराती रहे है ये आरज़ू मेरी
मैं तेरी आंखों को बरसात दे नहीं सकता
मालूम ही है आप को बंदे का ऐडरेस
सीधे इलाहाबाद मेरे नाम भेजिए
ये मेरी तमन्ना है प्यासों के मैं काम आऊं
यारब मिरी मिट्टी को पैमाना बना देना
ख़बर देती है याद करता है कोई
जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते
होंटों पर इक बार सजा कर अपने होंट
उस के बाद न बातें करना सो जाना