एक बार इंद्र ने लगातार 15 वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा नहीं की इस अनावृष्टि के कारण और दुर्भिक्ष पड़ गया | सभी मानव पीड़ित हो एक दूसरे को मार कर खाना चाहने लगे | ऐसी बुरी स्थिति में कुछ ब्राह्मणों ने एकत्र होकर यह विचार किया कि गौतम जी तपस्वी के बड़े धनी हैं | इस अवसर पर वही हम सब के दुखों को दूर करने में समर्थ हैं | वह मुनिवर इस समय अपने आश्रम पर गायत्री की उपासना कर रहे हैं अतः हम सभी को उनके पास चलना चाहिए |
ऐसा विचार कर वह सभी ब्राह्मण अपने अग्निहोत्र के समान कुटुंब, गोधन तथा दास वासियों को साथ लेकर गौतम जी के आश्रम गए | इसी विचार से अनेक दिशाओं से बहुत से अन्य ब्राह्मण भी वहां पहुंच गए ब्राह्मणों की इस बड़े समाजों को उपस्थित देखकर गौतम जी ने उन्हें प्रणाम किया और आसन आदि विचारों से उनकी पूजा की कुशल प्रश्नों के बाद उन्होंने उस संपूर्ण ब्राह्मण समाज से आगमन का कारण पूछा तब संपूर्ण ब्राह्मण अपना अपना दुख उनके सामने निवेदित किया | सारे समाचारों को जानकर मुनि व उन सब लोगों को अभय प्रदान करते हुए कहा कि प्रवर यह आश्रम आप लोगों का ही है | मैं आप लोग का दास हूं मुझे दास के रहते आप लोग को चिंता नहीं करनी चाहिए | संध्या और जब में परायण रहने वाले आप सभी देवी जी गण सुखी पूर्वक मेरे यहां रहने की कृपा करें इस प्रकार ब्राह्मण समाज को आश्वासन देकर मुनिवर गौतम जी भक्ति विनम्र और वेद माता गायत्री की स्तुति करने लगे | गौतम जी की स्तुति करने पर भगवती गायत्री उनके सामने प्रगट हो गई तथा गौतम पर प्रसन्न होकर भगवती गायत्री ने एक ऐसा पूर्ण पात्र दिया जिसे सब के भरण-पोषण की व्यवस्था हो सकती थी |उन्होंने मुन्नी से कहा मुनि तुम्हें जिस वस्तु की इच्छा होगी मेरा दिया हुआ यह पत्र उसे पूर्ण कर देगा यह कह कर श्रेष्ठ कला धारण करने वाली भगवती अंतर्ध्यान हो गई | महात्मा गौतम जी वस्तु की इच्छा करते थे वह देवी गायत्री द्वारा दिए हुए पूर्ण पात्र से उन्हें प्राप्त हो जाती थी | उसी समय मुनि गौतम जी ने संपूर्ण मुनि समाज को बुलाकर उन्हें प्रसन्न पूर्वक धन्य धन्य वस्त्र आभूषण आदि समर्पित कि उनके द्वारा गो पशु तथा यज्ञ की सामग्री भी दिए | जो सब की सब भगवती के पूर्ण पात्र से निकलती थी |
आए हुए ब्राह्मणों को प्राप्त हुई तत्पश्चात सभी लोग एकत्र होकर गौतम जी की आज्ञा से यज्ञ करने लगे इसी प्रकार भयंकर समय में भी गौतम जी के आश्रम नृत्य, उत्सव मनाया जाता था ना किसी को रोग का भय था ना असुरों के उत्पाद का गौतम जी का वह आश्रम चारों और संयोजन के विस्तार में था धीरे-धीरे अन्य बहुत से लोग भी वहां आ गए और आत्मज्ञानी मुनिवर गौतम जी ने सभी को अभय प्रदान करके उनके भरण-पोषण व्यवस्था कर दी उन विशिष्ट पृष्ठों के द्वारा अनेक विषयों के संपादित किए जाने पर यज्ञ भाजपा कर संतुष्ट हुए देवताओं ने दी गौतम जी के यह कि प्राप्त संस्था की इस प्रकार मुनिवर गौतम जी 12 वर्षों तक श्रेष्ठ मुनियों के भरण-पोषण की व्यवस्था करते रहे तथा थी उनके मन में कभी मात्र भी अभिमान नहीं हुआ उन्होंने अपने आश्रम में ही गायत्री की आराधना के लिए एक श्रेष्ठ स्थान का निर्माण करा दिया था | जहां सभी लोग जाकर भगवती जगदंबा गायत्री की उपासना करते थे एक बार गौतम जी के आश्रम में देवर्षि नारद पधारे वह बिना बजाकर भगवती के उत्तम गुणों का गान कर रहे थे वहां आखिर वह पुण्य आत्मा में बैठ गए गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों ने उनका स्वागत सत्कार किया तत्पश्चात नारदजी कहा उन्हें मैं दिवस सभा में गया था वहां देवराज इंद्र ने आपकी प्रशंसा करते हुए कहा कि मुनीम ने सब का भरण पोषण करके विशाल निर्मल यश प्राप्त किया है | भगवती गायत्री की कृपा से बहुत धन्यवाद की पात्र बन गए हो ऐसा कह कर देव की स्तुति करके नारद जी वहां से चले गए |
उसी समय वहां जितनी भी ब्राह्मण थे मुनि के द्वारा उनके भरण-पोषण की व्यवस्था होती थी परंतु उनमें से कुछ ब्राह्मण गौतम जी के इस उत्सव को सुनकर इससे जल उठे तदनंतर कुछ दिन बाद धरा पर वृष्टि भी होने लगी और धीरे-धीरे संपूर्ण देश में पानी का बाढ़ हो गया | धीरे-धीरे सब जगह पानी भर गया तुम अपनी जीविका पाली में कठिनाई होने लगी तभी वह इस ब्राह्मणों ने गौतम जी की निंदा एवं उनके श्राप देने के विचार से एक माया की गो बनाए | जिसमें मुनिवर गौतम जी यज्ञशाला में हवन कर रहे थे उसी क्षण वह गो वहां पहुंची मुनि शब्दों से उसे वारण किया इतने में उस गांव के प्राण निकल गए फिर तो उन दुष्ट ब्राह्मणों ने यहां हल्ला मचा दिया कि गौतम ने गौ हत्या कर दी मुनिवर गौतम जी भी हवन समाप्त करने के पश्चात इस घटित घटना पर अत्यंत आश्चर्य करने लगे | वह आंख मुक्त समाधि में स्थित होकर इसके कारण को विचार करने लगे उन्हें तत्काल पता लग गया कि यह सब इन विदेशी ब्राह्मणों का ही कुचक्र है उसी समय खुद से भरे हुए पल्लव कालीन रुद्र के समान अत्यंत तेजस्वी गौतम में ब्राह्मणों को श्राप देते हुए कहा अधर्म ब्राह्मणों आज से तुम सदा के लिए और अधर्म बन जाओ | तुम्हारा वेदमाता गायत्री के ध्यान और मंत्र जप में कोई अधिकार ना हो | गौ आदि दान और पितरों को किस राज्य से तुम विमुख हो जाओ तुम्हारा सदा के लिए अनाधिकार हो जाए तुम लोग पिता माता पुत्र भाई कन्या तथा भारिया का विक्रय करने वाले व्यक्ति के समान नरक को प्राप्त करें मेरे श्राप से कई पीढ़ी भोगे |
इस प्रकार दृष्टि ब्राह्मणों को वाणी द्वारा दंड देने के पश्चात गौतम जी ने जल आचमन किया उन ब्राह्मणों में जितना वेद अध्ययन किया था वह सब विस्मित हो गया गायत्री महामंत्र भी उनके लिए याद ना रहा | स्थिति को प्राप्त करके वह सब अत्यंत पश्चाताप करने लगे फिर उन लोगों ने मुनि के सामने दंड की भारती पृथ्वी पर लेटकर उन्हें प्रणाम किया लज्जा के कारण उनके सिर झुके हुए थे | सभी अधर्मी ब्राह्मण उनसे क्षमा की याचना करने लगे तब मुनिवर करुणा से भर गया उन्होंने ब्राह्मणों से कहा ब्राह्मणों जब तक भगवान श्री कृष्णचंद्र का अवतार नहीं होगा तब तक तुम्हें कुंभीपार्क नरक में अवश्य रहना पड़ेगा | क्योंकि मेरा वचन मिथ्या नहीं हो सकता इसके बाद तुम लोग का भूमंडल पर कलयुग में जन्म होगा हां यदि तुम्हें श्राप मुक्त होने की इच्छा है तो तुम सब के लिए जब परम आवश्यक है कि भगवती गायत्री के चरण कमल की उपासना करो उससे कल्याण होगा |
मुनिवर गौतम द्वारा अधर्मी ब्राह्मणों को श्राप

Top Posts
Don't Miss
Dehydration prevention tips – गर्मी का मौसम अपने साथ लाता है तपती धूप, पसीना और…