कावड़िया यात्रा (Kavadiya Yatra) कैसे प्रारंभ हुआ ?
कांवड़ यात्रा (Kavadiya Yatra) उत्तर भारत की प्रमुख यात्राओं में से एक है। इसमें शिवभक्त गंगा जी से जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करते हैं। ये पूरी यात्रा शिवभक्त पैदल ही तय करते हैं।
कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए हैं। अलग अलग जगहों की अलग मान्यताएं रही हैं, ऐसा मानना है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर “पुरा महादेव”, में जो उत्तर प्रदेश प्रांत के बागपत के पास मौजूद है, गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाकर उस पुरातन शिवलिंग पर जलाभिषेक, किया था। आज भी उसी परंपरा का अनुपालन करते हुए श्रावण मास में गढ़मुक्तेश्वर, जिसका वर्तमान नाम ब्रजघाट है, से जल लाकर लाखों लोग श्रावण मास में भगवान शिव पर चढ़ाकर अपनी कामनाओं की पूर्ति करते हैं।उत्तर भारत में भी गंगाजी के किनारे के क्षेत्र के प्रदेशों में कांवड़ का बहुत महत्व है।
सबसे पहला कावड़िया कौन थे ?
सबसे पहले कावड़िया कौन थे। इसे लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मान्यता है आइए जानें विस्तार से…
1. परशुराम थे पहले कावड़िया- कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था।
2. श्रवण कुमार थे पहले कावड़िया- वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कावड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया. वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए। इसे ही कावड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
3. भगवान राम ने की थी कावड़ यात्रा की शुरुआत-
कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावडिया थे। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कावड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
4. रावण ने की थी इस परंपरा की शुरुआत-समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया। शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया।तत्पश्चात कावड़ में जल भरकर रावण ने ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
कावड़ यात्रा में क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
कावड़ यात्रा एक पवित्र यात्रा होती है, इसलिए इस यात्रा में शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. बिना स्नान किए भक्तों को कांवड़ को हाथ नहीं लगाना चाहिए। अगर आप कांवड़ यात्रा कर रहे हैं और आपको किसी कारण से रुकना पड़ रहा है, तो गंगा जल से भरी हुई कावड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए। कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है।
कावड़ यात्रा के दौरान क्या-क्या जरूरत की सामग्री रखनी चाहिए (essential items during Kavad Yatra)?
० कांवड़ यात्रा के दौरान हमें रोजमर्रा की जरूरत की सामान अवश्य रखनी चाहिए जैसे साबुन ,ब्रश-टूथपेस्ट, कपड़े, टॉर्च इत्यादि।
० यात्रा के दौरान हमें अपने साथ दवाइयां भी रखनी चाहिए जो स्वास्थ्य खराब होने की स्थिति में काम आते हैं।
० कांवरिया यात्रा एक लंबी यात्रा होती है इसलिए हमें अपने साथ सूखा भोजन भी अवश्य रखना चाहिए तथा मनोरंजन के कुछ साधन भी रखनी चाहिए।
० कांवरिया यात्रा में हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कम से कम सामान और सामानों की सुरक्षा के लिए छोटे-छोटे ताले बैग में अवश्य लगाकर रखनी चाहिए।
० भीड़भाड़ वाली कावड़ यात्रा में चोरी का भी खतरा बना रहता है इसलिए महिलाओं को विशेष कर कम से कम आभूषण पहन कर जाना चाहिए तथा मोबाइल और पर्स को सावधानीपूर्वक रखनी चाहिए।