गुरु और शिष्य की प्रेरणादायक कहानी

एक आश्रम में एक गुरुजी अपने 4 शिष्यों के साथ रहते थे। एक बार गुरुजी और उनके शिष्य फल और सब्जियां बेचने के लिए बैलगाड़ी में सवार होकर बाजार गए। बैलगाड़ी को कहीं रुकने का आदेश देकर गुरुजी सो गए। तभी ठोकर लगी और गुरुजी की पगड़ी गिर गई। लेकिन गुरुजी के आदेश के अनुसार शिष्य नहीं रुके। जब गुरुजी जागे तो उन्हें अपने शिष्यों पर बहुत गुस्सा आया। इस बार सोने से पहले गुरुजी ने आदेश दिया कि गाड़ी से जो गिरे उसे उठाना है।

कुछ दूर जाकर बैलों ने गाय का गोबर बनाया। शिष्यों ने बैलगाड़ी रोकी और गोबर उठाकर गुरुजी के पास रख दिया। जब गुरुजी फिर से उठे तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और इस बार उन्होंने सोने से पहले कागज पर एक सूची बनाई, जिसमें लिखा था कि क्या उठाने के लिए रुकना है और कौन सी वस्तु लेने के लिए नहीं रुकना है।

बैलगाड़ी कुछ दूर चली और फिर ठोकर खा गई। इस बार बैलगाड़ी से गिरकर गुरुजी झुंड में गिर पड़े। शिष्यों ने सूची देखी तो देखा कि गुरुजी का नाम नहीं लिखा था।

गुरुजी चिल्लाते रहे और शिष्य मुंह झुकाए खड़े रहे। तभी वहां से एक बुढ़िया निकली। शिष्यों ने पूरी कहानी सुनाई। बुढ़िया ने शिष्यों से कागज लिया और ले जाने वाली चीजों की सूची में गुरुजी का नाम लिख दिया। फिर शिष्य गुरुजी के पास बाहर आए और सभी वापस आश्रम चले गए। क्या आप जानते हैं कि यह बच्चों के लिए सबसे लोकप्रिय नैतिक कहानियों में से एक है?