80+ Javed Akhtar की शायरी ,कोट्स और 2 Line शायरी
जावेद अख्तर किसी भी पहचान के मोहताज नहीं है जावेद अख्तर का पहचान एक प्रसिद्ध कहानी लेखाकार ,शायर गीतकार और कविताएं लिखने में जाना जाता है | जावेद अख्तर अपनी बातों को बेबाक अंदाज में हम सभी के बीच प्रस्तुत करते हैं |जो लोगों को काफी पसंद आता है | जावेद अख्तर की शायरी मैं जो दर्द और खुशी छुपी रहती है वह हमारे दिल को छू जाती है |जावेद अख्तर शायरी में प्यार सद्भावना और एक दूसरे से मिलजुल कर रहने की प्रेरणा छुपी रहती है | जावेद अख्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 को ग्वालियर शहर के मध्यप्रदेश में हुआ |
तमन्ना फिर मचल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था,
अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए !
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये गम दिल से निकल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
तमन्ना फिर मचल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था,
अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए !
अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी
हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये गम दिल से निकल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
जो फ़स्ल ख़्वाब की तैयार है तो ये जानो
कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का
नहीं मिलते हो मुझसे
तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ
“इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूं गिला फिर हमें हवा से रहे”
“हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे”
ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों
पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगे
बहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है
कम बे-शक पर उन को
मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे
ख़ून से सींची है
मैं ने जो ज़मीं मर मर के
वो ज़मीं एक
सितम-गर ने कहा उस की है
ये दुनिया भर के झगड़े घर
के किस्से काम की बातें,
बला हर एक टल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ.!
एहसान करो तो दुआओं में मेरी मौत मांगना,
अब जी भर गया है जिंदगी से !
एक छोटे से सवाल पर इतनी ख़ामोशी क्यों…
बस इतना ही तो पूछा था-
‘कभी वफा की किसी से’ …
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नों*,
ये भी जला डालो
कि सब बेघर हों और मेरा हो घर,
अच्छा नहीं लगता
तू तो मत कह हमें बुरा दुनियातू
ने ढाला है और ढले हैं हम
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती !
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की,
आज फिर दिल को हमने समझाया….
जिधर जाते हैं
सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल*
रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
जब जब दर्द का बादल छाया, जब गम का साया लहराया
जब आंसू पलकों तक आया, जब ये तन्हा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझा, दिल आखिरी तू क्यों रोता है,
दुनिया में यूं ही होता है।
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया,
एक वह दिन जब पेड़ की शाखें बोझ हमरा सहती थी
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हमदम होता है
“याद उसे भी एक अधूरा अफ़साना तोह होगा,
कल रास्ते में उसने हमको पेहचाना तोह होगा.”
ज़ख़्म तो हमने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है ,
हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है…
हम हैं मुसाफ़िर ऐसे जो मंज़िल से आए हैं…
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन
कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन
ये जो गहरा सन्नाटे है, वक्त ने सबको ही बनते हैं
थोड़ा घूम है सबका किस्सा, थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
आंख तेरी बेकार ही नाम है, हर पल एक नया मौसम है
क्यों तू ऐसे पल खोता है, दिल आखिर तू क्यों रोता है।
खो गयी है मंजिले, मिट गए है सारे रस्ते,
सिर्फ गर्दिशे ही गर्दिशे, अब है मेरे वास्ते..
काश उसे चाहने का अरमान न होता,
मैं होश में रहते हुए अनजान न होता
क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए
इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए
ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं
क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए
पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया
पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए
आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए
दोस्ती ज़ुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्त ने लूट लीं लोगों की तमन्नाएँ भी,
ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।
इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान
अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
दर्द अपनाता है पराए कौन,
कौन सुन रहा है, और सुनाए कौन
कौन दोहराए वो पुरानी बात,
गम अभी सोया है, जगाए कौन
आज फिर दिल है कुछ उदासी-उदास,
देखें, आज याद आए कौन
40+ 2 Line Javed Akhatar Shayari And Quotes !
कभी जो ख्वाब था वो पा आलिया है
मगर जो खो गई वो चीज क्या थी
जरा सी बात जो फेली तो दास्तान बनी,
वो बात खत्म हुई, दास्तान बाकी है
उन चिरागों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
क्यों डरें जिंदगी में क्या होगा?
कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा
ओह नहर एक किस्सा है दुनिया के वास्ते
फरहाद ने तरसा था खुद को छत पर
मुसिबत और लंबी जिंदगी,
बुज़ुर्गो की दुआ ने मार डाला
जिन-जिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदुरा हुआ
जाती रही स्पर्श के नरमी, बुरा हुआ
तुम्हें भी याद नहीं और मैं भी भूल गया
वो लम्हा कितना हसीन था मगर फुजूल गया
ऊंची इमारतों से मकान मेरा घर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
सब का खुशी से फसल एक कदम है
हर घर में बस एक ही कमरा काम है
क्या शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंथो पे लतीफे हैं आवाज़ में छले हैं
रात सर पर है और सफर बाकी
हमको चलना जरा सवेरे था
अकेला ये कहती दुनिया मिलती है बाजार में,
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखा
तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया,
तूने ढाल है और ढले हैं हम…
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं,
जाख्म कैसे भी हो कुछ रोज में भर जाते हैं…
मुझे दुश्मन से भी
ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो
सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
तुम फ़ुज़ूल बातों का दिल पे बोझ मत लेना
हम तो ख़ैर कर लेंगे ज़िंदगी बसर तन्हा.!
ये ज़िन्दगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का
ग़लत बातों को ख़ामोशी
से सुनना, हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इसमें
मगर अच्छा नहीं लगता
चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब
शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब
दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
सब को दावा-ए-वफ़ा सबको यक़ीं
इस अदकारी में हैं उस्ताद सब
चाँद यादों के दिये थोड़ी तमन्ना कुछ ख्वाब ,
ज़िन्दगी तुझ से ज़्यादा नहीं माँगा हम नैय…
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था
अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए.
भूलके सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ सबको होगा याद सब.
उस से मैं कुछ पा सकू ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी शायद बराए मेहरबानी दे गया
सब की ख़ातिर हैं यहाँ सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब
हर खुशी में कोई कमी-सी है
हंसती आंखों में भी नमी-सी है
ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब