135+ Munnawar Rana की शायरी,कोट्स और 2 Line शायरी
मुनव्वर राणा को हम एक खुशमिजाज और प्यार से भरी शायरी लिखने के लिए जाने जाते है | मुनव्वर राणा द्वारा शायरी और कविता के क्षेत्र में किसी वस्तु विशेष पर टिप्पणी देना और अपने विचार शायरी के माध्यम से साझा करना हम सभी को बहुत पसंद आता है | मुनव्वर राणा को हम एक देशभक्त और दूसरों के विचारों को समझने के कारण भी लोग इन्हें बहुत ज्यादा पसंद करते हैं | मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर 1952 को रायबरेली में हुआ है मुनव्वर राणा का जीवन मैं बहुत ही उतार-चढ़ाव और संघर्ष पूर्ण रहा है |
थोड़ा मनमुटाव वहां भी मंजूर है जहां सच्ची मोहब्बत की मौजूदगी है,
जिस झील में पानी काफी गहरा हो वहां थोड़ी बहोत काई का होना लाजमी है.
भागदौग भरी जिंदगी में अक्सर थककर चूर हो जाता हूं,
जब भी मिलाता हूं मां से नज़रें फिरसे तरोताज़ा हो जाता हूं.
दो रुपये के सिक्के को देखकर ये अक्सर दुनिया को भूल जाते हैं,
ये बच्चें है बचपन में ही अपनी जिंदगी का असल लुफ्त उठा जाते हैं.
मुश्किलें कितनी भी हो हमेशा मुस्कराना चाहिये,
हो किसी के लिए दिल में सच्ची मोहब्बत तो,
उसका खुलेआम इजहार होना चाहिये,
कम्बखत जिंदगी हमें आखिर कबतक यूं दरबदर करेगी,
टुटाफुटा ही सही लेकिन घरबार होना चाहिये.
दो वक्त की रोटी तक नहीं दी उस कम्बखत ने अपनी माँ को मगर,
माँ ने जमाने में यही बताया कि बेटा सबसे अच्छा है.
तलवार की नियाम कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आए
पहले भी बे-लिबास थे इतने मगर न थे
अब जिस्म से लिबास-ए-हया भी उतर गया
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं
तमाम उम्र हम एक दुसरे से लड़ते रहे
मगर मरे तो बराबर में जा के लेट गए
हर चेहरे में आता है नज़र एक ही चेहरा
लगता है कोई मेरी नज़र बांधे हुए हैं
दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूं
तू चांद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूं
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
इन कटोरों में अभी थोड़ा सा पानी और है
मज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इन को काम दो
एक इमारत शहर में काफ़ी पुरानी और है
तेरे इंतजार में सिर्फ यही सोचकर कि तेरा लौट आना पक्का है,
एक अरसे से घड़ी की और मुड़कर नहीं देखा.
नजाने कैसी सुकूं की रात आती है जब तेरी मौजूदगी हमारे साथ होती है,
वैसे तो लाख बुराइयां है तुझमें लेकिन मुझे तो हमेशा बस तेरी अच्छाई नजर आती है,
जमाने की खुशियों में शरीक होने हम घर से कम निकलते हैं,
जब भी खोलो दिल की किताब को हमेशा गम ही मिलते हैं.
महज़ एक छोटे से किस्से की तरह उसने मुझे अपने ज़हन से निकाल दिया,
एक पैगाम की तरह वो अभीतक मुझे याद है.
थकान हो जितनी सभी एक झटके में उतार देती है,
खुदकी खुशियों को छोड़कर अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाती है,
बच्चो से भलेही मिले उसको दर्द लेकिन ज़माने में हमेशा
अपने बच्चों की इज्जत बढ़ाती है, सचमें यारों माँ तो माँ होती है.
मोहब्बत करनी ही है तो इतनी शिद्दत से करना कि जमाने हर कोई तुम्हारी मिसालें दे,
और अगर उसे याद कर रोना ही है तो इसके कदर रोना की बादल भी तुम्हारे सामने तौबा करदे.
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
वह चाहे मजनूँ हो, फ़रहाद हो कि राँझा हो
हर एक शख़्स मेरा हम सबक़ निकलता है
एक ज़ख़्मी परिंदे की तरह जाल मे हम हैं
ए इश्क़ अभी तक तेरे जंजाल मे हम हैं
इतना सांसों की रफाकत पे भरोसा न करो
सब के सब मिट्टी के अम्बार में खो जाते हैं
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे मायें रोज़ आती हैं
वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है
रेत पर ओस से इक नाम लिखा होता है
मैं भुलाना भी नहीं चाहता इस को लेकिन
मुस्तक़िल ज़ख़्म का रहना भी बुरा होता है
तेरे एहसास की ईंटें लगी हैं इस इमारत में
हमारा घर तेरे घर से कभी ऊँचा नहीं होगा
ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं
सहरा में चराग़ों की दुकानें नहीं होतीं
ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
मैं मोहतरम हुआ तो ज़माने से कट गया
उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया
वर्ना वही उजाड़ हवेली सी ज़िंदगी
तुम आ गए तो वक़्त ठिकाने से कट गया
अभी रोशन हैं चाहत के दिये हम सबकी आँखों में
बुझाने के लिये पागल हवायें रोज़ आती हैं
मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता
हम से मुहब्बत करने वाले रोते ही रह जाएँगे
हम जो किसी दिन सोए तो सोते ही रह जाएँगे
बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है
गुलाब ऎसे ही थोड़े गुलाब होता है
ये बात काँटों पे चलने के बाद आती है
जितने बिखरे हुए कागज़ हैं वो यकजा कर ले,
रात चुपके से कहा आके हवा ने हम से।
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है ,थक गए हम भी
चलो हम आज ये किस्सा अधूरा छोड़ देते हैं।
अब मुझे अपनी पज़ीराई से डर लगता है
इतनी शोहरत हो तो रुस्वाई से डर लगता है
नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है
ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए
किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी
हमें मालूम है तुमको यह बीमारी नहीं होगी
अच्छा हुआ कि मेरा नशा भी उतर गया
तेरी कलाई से ये कड़ा भी उतर गया
चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखि है
कई घरों को निगलने के बाद आती है
मदद भी शहर के जलने के बाद आती है
ऐ ख़ुदा थोड़ी करम फ़रमाई होना चाहिए
इतनी बहनें हैं तो फिर इक भाई होना चाहिए
आते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन क़रीब
लगता है जैसे रेल से कटने लगा हूँ मैं
साँसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें
सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी
एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया
इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
मैं इसके नाज़ उठाता हूँ सो यह ऐसा नहीं करती
यह मिट्टी मेरे हाथों को कभी मैला नहीं करती
काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
इक ज़रा देर को कमरे में अँधेरा कर ले
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं
हम तो उस धूप में भी तेरी तलाश करते रहें जिस धूप में परिंदे तक नहीं उड़ते.
इस जहां में ये करिश्माई तोहफे से हर औरत नवाजा है,
की वो सबकुछ तो भूल जाती है लेकिन अपने बच्चों की पहचान कभी नहीं भूलती.
कम्बखत अमीरों की बस्ती में कोई भी रिश्ता नहीं मानता,
और ये गरीबी मिलों दूर बसे चाँद को भी अपना मामा बना देती है.
जब तक है हाथ में जिंदगी की डोर है तबतक ही इस दुनिया में हमारी पहचान है,
वर्ना अनगिनत बार देखा होगा पतंगों को कटते हुए.
मिटाना बहोत ही मुश्किल है उसकी यादों को ज़हन से, मुझे उसकी हर बात याद रहती हैं,
जो भी करने की कोशिश करता है हमसे बराबरी उसकी कम्बखत सात पुश्तें बर्बाद रहती हैं.
मुस्तकिल जूझना यादों से बहुत मुश्किल है
रफ्ता-रफ्ता सभी घरबार में खो जाते हैं
इतना सांसों की रफाकत पे भरोसा न करो
सब के सब मिट्टी के अम्बार में खो जाते हैं
मेरी खुद्दारी ने अहसान किया है
मुझ पर वर्ना जो जाते हैं, दरबार में खो जाते हैं
कौन फिर ऐसे में तनकीद करेगा तुझ पर
सब तेरे जुब्बा-ओ-दस्तार में खो जाते हैं
मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए
हम इस ग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आई
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसम
ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा
नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी
मैंने जो मां पर लिखा है, वही काफी होगा।
कितनी भी कोशिश करो ये कम्बखत हमेशा जेहन में बना रहता है,
एक आशिक हमेशा इश्क की वजह से बर्बाद रहता है.
जिंदगी भर के लिए बेजुबान हो गए सांप से सिर्फ यह सुनकर,
की जिस वक्त से इंसानों को डसा है खुदके ईमान से बेईमानी की बू आने लगी है.
इन मासूमों को अपनी खुशियों के ठिकाने बड़े अच्छे तरीके से याद रहते हैं,
किस गली में है खिलौनों की दुकान बच्चे बड़े अच्छे से समझते हैं.
कोई शक्स किसी के साथ उम्र भी गुजारले लेकिन तब भी अच्छा नहीं लगता,
और कोई इंसान एक नजर में किसी की जिंदगी बन जाता है.
हम उसकी खूबसूरती को निहारते निहारते कुछ इस तरह से खो जाते हैं,
जैसे छोटेसे बच्चे मेले की चकाचौंद को देखकर वहीं बस जाते हैं.
जिंदगी में कभी उतनी तवज्जो देकर हमने खुशी को नहीं देखा,
जिस पल महसूस किया तुम्हारे इश्क़ को तबसे कभी गैर की और नहीं देखा.
जब भी छूता हूं माँ के कदमों को ये सारी कायनात खुशनुमा हो जाती है,
जब भी पढ़ता हूँ उर्दू की ग़ज़ल, माँ हिंदी मुस्कुराती है.
में तो एक बंद ताला हूं किसी गैर चाबी से खुल नहीं सकता,
तुही मेरी चाबी है तेरे बिना में कभी किसी और का हो नहीं सकता.
मुन्नवर अब तो कोई दोस्त लाओ मुकाबले में हमारे,
क्योंकि सारे ज़माने में कोई दुश्मन हमारे बराबरी का नहीं.
55+ 2 Line Shayari Munnawar Rana Quotes !
हरेक आवाज़ उर्दू को अब फरयादी बताती है।
ये पगली फिर भी खुद को अब तक शहजादी बताती है।
कई बातें मोहब्बत सबको बुनयादी बताती है।
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है।
जहाँ पिछले कई बरसो से काले नाग बैठे हैं
वहां घोसला चिडियो का है दादी बताती है।
थकन को ओढ़ के बिस्तर में जाकर लेट गए
हम अपनी कबड़े मुक़र्रर में जाके लेट गए
तमाम उम्र हम दूसरे से लड़ते रहे
जब मरे तो बराबर जाकर लेट गए।
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक
मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है
तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता
तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने
कलंदर संग मर मर के मकानों में नहीं रहता
मैं असली घी हु बनिए के दुकानों में नहीं मिलता।
फिर दुनिया में मेरे चाहने वाले कहाँ होते।
ये अच्छा शेर है कारखानों में नहीं मिलता।
उनके होठो से मेरे हक में दुआ निकली
जब मरज़ फ़ैल चूका है तब दबा निकली
हमारे गुनाहो की सज़ा भी कुछ साथ चलती है
हम अब तनहा नहीं चलते दबा भी साथ चलती है।
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ नहीं होगा
मैं जब चलता हु दुआ भी साथ चलती है।
मैं इसका नाज़ उठता हु सो ये ऐसा नहीं करती
ये मिटटी मेरे हाथों को कभी मैला नहीं करती
खिलौने की दुकानों की तरफ से आप क्यों गुजरे
ये बच्चे की तमन्ना है ये समझता नहीं कड़ती।
शहीदों की ज़मी है जिसको हिंदुस्तान कहतें हैं
ये बंजर हो के भी बुझदिल कभी पैदा नहीं करती।
एक ज़ख्म परिंदे की तरह हम जाल में हैं
ए इसक अभी तक तेरे जंजाल में हम है।
अब आपके मर्ज़ी है संभाले न संभाले
खुशबु की तरह आपके रुमाल में हम है।
आपकी सूरत ही सही याद है अब तक।
माँ कहती थी ले ओढ़ ले इस साल में अब हम हैं।
मैं उठ के रोने लगा जब मौत के डर से
नेकी ने कहा नामाये अमाल में हम हैं
चलती फिरती आँखों से अदा देखि है
मैंने ज़न्नत तो नहीं देखि माँ देखि है।
मुहाजिर हैं मगर हम दुनिया छोड़ आये हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आये हैं।
ये खुदगर्जी का ज़ज़्वा आज़तक हमको सताता है
की हम बेटे तो लाये भतीजा छोड़ आये।
किया है अपने को बर्वाद शेर कहने लगे
जब या गयी है तेरे याद तो शेर कहने लगे।
ये नहर दूध की हम भी निकाल सकते हैं
मजा तो जब है की फरहाद शेर कहने लगे।
ए अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखे खोल दी घर में उजाला हो गया।
गले मिलती हुयी नदियां गले मिलते हुए मौषम
इलाहाबाद में कैसा नजारा छोड़ आएं हैं
कल एक अमरुद वाले से कहना पड़ गया हमको
जहां से आएं हैं इस फल की बगिया छोड़ आएं हैं।
अब कोई दोस्त लाओ मुकाबिल के हमारे
दुसमन तो कोई कद के हमारे बराबर नहीं निकला
इसक है तो इसक का इजहार होना चाहिए
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
अपनी यादो से कहो एक दिन की छुट्टी दे हमे
इसक के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए।
किसी को घर मिला हिस्से में या दूका आयी
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आयी।
बुलंदी देर तक किस सख्स के हिस्से में रहती है
बहुत अच्छी ईमारत हर घड़ी खतरे में रहती है
बहुत जी चाहता है कायदे जान से हम निकल जाएँ
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलवे में रहती है।
जब भी कस्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुयी खुवाब में आ जाती है।
दुःख भी ला सकती है लेकिन जनवरी अच्छी लगी
जिस तरह बच्चो को जलती फुलझरी अच्छी लगी।
रो रहे थे सब तो मैं भी फुट के रोने लगा।
वरना मेरी बेटियों की रुखसती अच्छी लगी।
गिरगिराये नहीं हाँ हम दो सना से मांगी
भीख भी हमने जो मांगी खुदा से मांगी।
लिपट जाता हु माँ से और मौसी मस्कुराती है
मैं उर्दू में गजल कहता हु हिंदी मुस्कुराती है।
आगे जख्म पर चाहत से पट्टी कोन बंधेगा
अगर बहने नहीं होगी तो राखी कोन बंधेगा।
उदाश रहने को अच्छा नहीं बताता है
कोई भी जहर को मीठा नहीं बताता है।
कल अपने आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमे बूढ़ा नहीं बताता है।
ऐ अँधेरे देख तेरा मुँह काला हो गया
माँ ने आँखे खोल दी घर में उजाला हो गया।
किसी से भी कहीं जिक्रे जुदाई मत करना
इन आंशुओ को कभी रोसनाई मत करना।
जहाँ से जी न लगे तुम वहीँ बिछड़ जाना
मगर खुदा के लिए वेबफ़ाई मत करना।
हमारे कुछ गुनाहो की सजा भी साथ चलती है।
हम अब तनहा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है।
मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जौन
मान से इस तरह लिप्टुन की बच्चा हो जौन
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धोती है,
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
आए अंधे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
मां ने आंखें खोल दी घर में उजाला हो गया।
मैंने बुलंदियों के हर निशान को छुआ…
जब माँ ने भगवान में उठा तो आसमान को चुआ!
किसी को घर मिला हिसे में या कोई दुकान आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिससे में मान आई