यह एकादशी पापमोचनी एकादशी कहलाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है और सुख समृद्धि प्राप्त होती है।
कथा– प्राचीन काल में चित्ररथ नामक वन में देवराज इन्द्र गन्धर्वो और अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। वहीं महर्षि च्यवन के पुत्र मेधावी ऋषि भी तपस्या कर रहे थे। मेधावी ऋषि के सुन्दर रूप को देखकर मंजुघोषा नामक अप्सरा उन पर आसक्त हो गई। उसने अपने हाव-भावों से ऋषि को मोहित कर लिया। अनेकों वर्ष उन दोनों ने साथ-साथ गुजारे। एक दिन जब मंजुघोषा वापस जाने लगी, तब ऋषि को अपनी तपस्या भंग होने का भान हुआ। उन्होंने क्रोधित होकर अप्सरा को पिशाचनी होने का शाप दिया। बहुत अनुनय-विनय करने पर ऋषि का हृदय पसीज गया और उन्होंने उसे चैत्र कृष्णा एकादशी को विधिपूर्वक व्रत करने के लिए कहा और बताया कि इसके करने से उसके पाप और शाप समाप्त हो जायेंगे और वह पुनः अपने पूर्व रूप को प्राप्त करेगी। मंजुघोषा से इतना कहकर ऋषि मेधावी अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुंचे। च्यवन ऋषि ने सारी बात सुनकर कहा-पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया। तुमने अप्सरा को शाप देकर स्वयं पाप कमाया है अतः तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके मंजुघोषा ने शाप से और ऋषि मेधावी ने पाप से मुक्ति पाई।