महाशिवरात्रि कथा(Mahashivratri Vrat Katha)
महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव की आराधना का प्रमुख दिन है। यह पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त व्रत रखते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। इस पावन दिन से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से प्रमुख कथा इस प्रकार है:
समुद्र मंथन और हलाहल विष
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तो उसमें से अमृत के साथ-साथ अनेक प्रकार की मूल्यवान वस्तुएँ भी निकलीं। लेकिन साथ ही समुद्र से एक भयंकर विष “हलाहल” भी निकला, जिसकी ज्वाला इतनी प्रचंड थी कि उससे तीनों लोक जलने लगे।

देवता और असुर इस विष से बचने के लिए भगवान शिव की शरण में गए। करुणामयी भगवान शिव ने संसार की रक्षा हेतु उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष का प्रभाव उनके गले तक ही सीमित रह गया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे “नीलकंठ” कहलाए। इस महान त्याग और बलिदान की स्मृति में महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है।
शिव और माता पार्वती का विवाह
एक अन्य कथा के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। माता पार्वती ने शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस पावन अवसर की स्मृति में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

लिंगोद्धव कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। तभी वहाँ एक विशाल अग्नि स्तंभ प्रकट हुआ, जिसका आदि और अंत दिखाई नहीं दे रहा था। ब्रह्मा और विष्णु ने इस अग्नि स्तंभ के आदि और अंत को जानने का प्रयास किया। ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर गए और विष्णु वराह का रूप लेकर नीचे की ओर गए। लेकिन वे इसका अंत न पा सके।
तभी भगवान शिव इस अग्नि स्तंभ से प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि वे ही सृष्टि के आदिकाल से हैं और यही शिवलिंग का स्वरूप है। इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि व्रत का महत्त्व
महाशिवरात्रि का व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो भक्त श्रद्धा और भक्ति से इस दिन रात्रि जागरण और शिव पूजन करता है, उसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
इस प्रकार महाशिवरात्रि शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण दिन है।
भगवान शिव की आरती(aarti)
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।