भगवान बुद्ध और लकड़हारे की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक ईमानदार लकड़हारा रहता था। वह रोज आसपास के जंगल में पेड़ काटने जाता था। वह लकड़ियों को लेकर गाँव लौटता और धन प्राप्त करने के लिए उन्हें एक व्यापारी को बेच दिया करता था। वह अपनी संयमित जीवन शैली से संतुष्ट था।

एक दिन जब वह नदी के पास एक पेड़ काट रहा था, तो उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथ से फिसल कर नदी में गिर गई। नदी इतनी गहरी होने के कारण वह इसे अपने दम पर निकालने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। उसके पास केवल एक कुल्हाड़ी थी, जो उसने नदी में खो दी थी। वह वास्तव में इस बात को लेकर चिंतित था कि आज वह कैसे जीवन व्यतीत कर पाएगा और उसने भगवान बुद्ध से मदद के लिए प्रार्थना की।

भगवान बुद्ध जल के देवता के रूप में उभरे। उन्होंने पूछा कि वह क्यों रो रहा है। लकड़हारे ने अपना असंतोष व्यक्त किया। तब  भगवान बुद्ध ने पानी को दो भागों में विभाजित किया और उसे सोने की कुल्हाड़ी दी। लकड़हारे ने इसे लेने से इनकार कर दिया। बुद्ध नदी में लौट गए , और इस बार चांदी की कुल्हाड़ी लेकर फिर से प्रकट हुए, लेकिन लकड़हारे ने उन्हें एक बार फिर ठुकरा दिया।

इसके बाद वह लोहे की कुल्हाड़ी लेकर पहुंचे। इसे लकड़हारे ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। नदी भगवान बुद्ध ने उसे सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी साथ में दे दी  क्योंकि भगवान बुध लकड़हारे की ईमानदारी से बहुत प्रसन्न थे। लक्कड़हारा भगवान बुद्ध का बहुत धन्यवाद किया और खुशी खुशी अपने सभी सामान को लेकर घर लौट गया।

कहानी की निष्कर्ष: ईमानदारी सबसे अच्छी नीति