Swami Ramakrishna Paramahansa Quotes And Thoughts in Hindi

80+ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रेरणादायक कोट्स और थॉट

स्वामी रामकृष्ण परमहंस गुरु तथा मां काली के परम भक्त रूप में हम सभी जानते हैं | स्वामी रामकृष्ण परमहंस किसी भी पहचान के मोहताज नहीं है वह स्वामी विवेकानंद के गुरु थे | स्वामी रामकृष्ण परमहंस की भक्ति भाव मैं मां काली के चरणों में सारा जीवन समर्पण कर दिया | स्वामी रामकृष्ण परमहंस इस संसार को ईश्वर के नजर से देखते थे उनका मानना था कि मृगतृष्णा जैसे कि लोभ, अहंकार ,लालच या बड़ा नाम और पैसा यह सभी चीजें संसार के बंधन में बांध के रखने जैसी है | स्वामी विवेकानंद की विचारधारा अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस से उत्प्रेरित थी |

भगवान हर जगह है और कण-कण में हैं,
लेकिन वह एक आदमी में ही सबसे अधिक प्रकट होते है,
इस स्थिति में भगवान के रूप में आदमी की
सेवा ही भगवान की सबसे अच्छी पूजा है।

फलों से लदा पेड़ हमेशा नीचे झुकता है।
यदि आप महान बनना चाहते हैं,
तो दीन और नम्र बनो।

इश्वर सभी मनुष्यो में है परन्तु सारे मनुष्य ईश्वर में नहीं है यही हमारे दुःख का कारण है।

यदि एक बार गोता लगाने से आपको मोती नहीं मिलता है तो
आपको यह निष्कर्ष निकालने की आवश्यक नहीं है की समुद्र में मोती नहीं है।

अगर एक बार गोता लगाने से तुम्हें मोती ना मिले,
तुम्हें यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि समुद्र में रत्न नहीं होते।

बरसात का पानी ऊंची जमीन पर नहीं टिकता वह बहकर नीचे ही आता है।
जो विनम्र और सच्चे हैं उन पर ईश्वर की दया बनी रहती है,
परंतु अहंकारी और धंभी पर अधिक देर तक नहीं टिक पाती है ।

अगर दाद रोग को खुजलाओ तो अच्छा लगता है ।
लेकिन खुजलाने के बाद वहाँ दर्द और जलन होने लगती है।
इसी तरह संसार के सुख शुरू में बडे़ आकर्षक लगते हैं,
परंतु इनके परिणाम भयानक और सहन करने मैं कष्टकारी होते हैं ।

अहंकार के मर जाने पर सारे संकट समाप्त हो जाते हैं।

भगवान को सभी पथो और माध्यमों के द्वारा महसूस किया जा सकता हैं,
सभी धर्म सच्चे और सही हैं। महत्वपूर्ण बात यह यह कि आप उस तक पहुँच पाते हैं या नहीं।
आप वहां तक जानें के लिए कोई भी रास्ता अपना सकते हैं रास्ता महत्व नहीं रखता।

यदि आप पागल ही बनना चाहते हैं तो सांसारिक
वस्तुओं के लिए मत बनो, बल्कि भगवान के प्यार में पागल बनों।

अनुग्रह की हवाएँ हर समय चलती हैं।
हमें बस इतना करना है कि हम अपनी पाल सेट करें।

हम चाहे दुनिया में हर तीर्थ धाम कर ले, तब भी हमे सुकून नहीं मिलेगा।
जब तक की हम अपने मन में शांति न खोजे।

सत्य बताते समय बहुत ही एक्राग और नम्र होना चाहिए क्योंकि सत्य के माध्यम से ही
भगवान का अहसास किया जा सकता हैं।

इस दुनिया के सभी धर्म सच्चे हैं, इनमें कोई अंतर नहीं है,
वे ईश्वर तक पहुंचने के अलग-अलग साधन मात्र है।

एक सामान्य आदमी झूला भरकर धर्म की बात बातें करता है
किंतु खुद के व्यवहार में एक दाना बराबर नहीं लाता
एक बुद्धिमान व्यक्ति बातें थोड़ी करता है जबकि उसका पूरा जीवन धर्म के
वास्तविक व्यवहार का प्रदर्शन होता है

भगवान की उनकी कृपा की हवा तो हमेशा बह रही है
यह हमारे हाथ में है कि अपनी नाव की पाल चढ़ाएं
और ईश्वर की कृपा की दिशा में बढ़ जाए

प्यार के माध्यम से त्याग और विवेक स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाते हैं।

बिना सत्य बोले तो भगवान को प्राप्त ही नहीं किया जा सकता, क्योंकि सत्य ही भगवान हैं।

अनुभव एक कठिन शिक्षक है वह पहले परीक्षा लेती है और बाद में सबक देती है।

नाव को हमेशा जल में ही रहना चाहिए जबकि जल को कभी भी नाव में नही होना चाहिए।
ठीक उसी प्रकार भक्ति करने वाले इस दुनिया में रहे लेकिन जो भक्ति करे
उसके मन में सांसारिक मोहमाया नहीं होना चाहिए।

यदि आप पागल ही बनना चाहते हैं तो सांसारिक वस्तुओं के लिए मत बनो,
बल्कि भगवान के प्यार में पागल बनो।

जब फूल खिलता है तो मधुमक्खी बिना बुलाये आ जाती है और
हम जब प्रसिद्ध होंगे तो लोग बिना बताये हमारा गुणगान करने लगेंगे।

दुनिया का एकमात्र ईश्वर ही पथ प्रदर्शक और सच्चे राह दिखलाने वाला है

यदि हम कर्म करते है तो अपने कर्म के प्रति भक्ति का भा होना परम
आवश्यक है तभी वह कर्म सार्थक हो सकता है

जब हवा चलने लगी तो पंखा छोड़ देना चाहिए पर जब
ईश्वर की कृपा दृष्टि होने लगे तो प्रार्थना तपस्या नहीं छोड़नी चाहिए।

यदि हम कर्म करते हैं तो अपने कर्म के प्रति भक्ति का भा होना परम
आवश्यक है तभी वह कर्म सार्थक हो सकता है। –

दुनिया के हर तीर्थ धाम कर ले भी तो हमें सुकून नहीं मिलेगा
जबतक हम अपने मन में शांति न खोजें।

ईश्वर सभी मनुष्यों में हैं, किन्तु सारे मनुष्य ईश्वर में नहीं हैं, यही हमारे दुःख का कारण है.

जिस प्रकार किरायेदार घर उपयोग करने के लिए उसका किराया देता हैं
उसी प्रकार रोग के रूप में आत्मा, शरीर को प्राप्त करने के लिए टैक्स अथवा किराया देती हैं

जीवन का विश्लेषण करना रोक दो। यह जीवन को और जटिल बनाएगी। अपना जीवन जियो।

प्रेम के माध्यम से त्याग और विवेक की भावना स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाती है।

आप रात में आकाश में कई तारे देखते हैं, लेकिन जब सूरज उगता है तब नहीं.
इसलिए क्या आप कह सकते हैं कि दिन में आकाश में तारे नहीं होते?
क्योंकि तुम अपने अज्ञान के दिनों में ईश्वर को नहीं पा सकते, ऐसा मत कहो कि ईश्वर नहीं है।

पवित्र पुस्तकों में बहुत सी अच्छी बातें मिल जाती है ,
लेकिन केवल उन्हें पढ़ने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता।

ईश्वर की भक्ति या प्रेम के अलावा कार्य , असहाय है और अकेला खड़ा नहीं हो सकता।

वह ज्ञान जो केवल मन और हृदय को शुद्ध करता है,
वही सच्चा ज्ञान है, बाकी सब ज्ञान का निषेध मात्र है।

शरीर, वास्तव में, केवल एक क्षणिक अस्तित्व है। अब शरीर मौजूद है,
और अब यह नहीं है। एकमात्र भगवान ही असली हैं।

जब दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है, तो सभी समान दिखाई देते हैं।
और अच्छे-बुरे का, या ऊंच-नीच का भेद नहीं रहता।

अगर आपको पागल होना ही है तो दुनिया की चीजों के लिए न हो .
भगवान के प्यार में पागल हो जाओ।

आपके पास जो कुछ कर्तव्य हैं , उन्हें पूरा करें , और तब आपको शांति मिलेगी।

जब तक कोई व्यक्ति सत्य नहीं बोलता वो परमेश्वर को नहीं पा सकता जो की सत्य की आत्मा हैं।

जो मनुष्ना किसी स्वार्थ के दूसरों के लिए कार्य करता है,
वह वास्तव में स्वयं का भला करता है।

यदि आप पागल ही बनना चाहते हैं तो सांसारिक वस्तुओं के लिए मत बनो,
बल्कि भगवान के प्यार में पागल बनों

जब फूल खिलता है, मधुमक्खियों बिन बुलाए आ जाती हैं
प्यार के माध्यम से एक त्याग और विवेक स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाते हैं

धर्म पर बात करना बहुत ही आसान है,
लेकिन इसको आचरण में लाना उतना ही मुश्किल हैं

भगवान की भक्ति या प्रेम के बिना किया गए कार्य को पूर्ण नहीं किया जा सकता

बिना सत्य बोले तो भगवान को प्राप्त ही नहीं किया जा सकता, क्योकि सत्य ही भगवान हैं

भगवान की तरफ विशुद्ध प्रेम बेहद जरूरी बात है
और बाकी सब असत्य और काल्पनिक है

जब तक यह जीवन हैं और तुम जीवित हो, सीखते रहना चाहिए

जिस व्यक्ति में ये तीनो चीजे हैं, वो कभी भी भगवान को प्राप्त
नहीं कर सकता या भगवान की द्रष्टि उस पर नहीं पड़ सकती। ये तीन हैं लज्जा, घृणा और भय

जिस प्रकार किरायेदार घर उपयोग करने के लिए उसका किराया देता हैं
उसी प्रकार रोग के रूप में आत्मा, शरीर को प्राप्त करने के लिए टैक्स अथवा किराया देती हैं

परमेश्वर प्रत्येक मनुष्य में है , परन्तु प्रत्येक मनुष्य परमेश्वर में नहीं हैं , इसलिए हम पीड़ित हैं।

जब तक हमारे मन में लालसा है , तब तक हमें ईश्वर की प्रप्ति नहीं हो सकती।

ईश्वर सब जगह है परन्तु वह मनुष्य में सबसे अधिक प्रकट होता है,
इसलिए मनुष्य की भगवान की तरह सेवा करो, जोकि भगवान की पूजा करने जितना ही अच्छा है।

जिस प्रकार गंदा दर्पण सूर्य की रोशनी में नहीं चमकता ठीक उसी प्रकार गंदे मन वालों पर ईश्वर के आशीर्वाद का प्रकाश नहीं पढ़ सकता।

दुनिया वास्तव में सच्चाई और विश्वास का मिश्रण है। विश्वास को त्यागें और सत्य को ग्रहण करें।

यह संसार कर्मक्षेत्र है और मानव का जन्म कर्म करने हेतु हुआ है।

भगवान ने अलग-अलग धर्मों को अलग-अलग आकांक्षी,
समय और देशों के अनुरूप बनाया है. सभी सिद्धांत इतने ही मार्ग हैं;
लेकिन रास्ता किसी भी तरह से स्वयं भगवान नहीं है.
वास्तव में, कोई भी ईश्वर तक पहुंच सकता है यदि कोई किसी भी मार्ग का पूरे दिल से
पालन करता है, कोई भी केक को सीधे या किनारे से खा सकता है।
यह किसी भी तरह से मीठा स्वाद लेगा।

बंधन और मुक्ति तो मन के ही हैं।

कस्तूरी मृग उस गंध के स्रोत को खोजता रहता है, जबकि वो गंध स्वयं उसमें से आती हैं।

दुनिया वास्तव में सत्य और विश्वास का मिश्रण है .
बनावटीपन को त्यागें और सत्य को ग्रहण करें।

एक व्यक्ति दीपक की रौशनी में भी भागवत पढ़ सकता है
और तेज रौशनी में भी जालसाज़ी कर सकता है। दीपक इन सबसे
अप्रभावित रहता है। इसी प्रकार सूरज की रौशनी सभी के लिए समान है,
चाहें वो गुनी व्यक्ति हो या दुष्ट व्यक्ति।

नाव हमेशा जल में ही चलती है, जल कभी भी नाव में नहीं होना चाहियें,
उसी प्रकार भक्ति करने वाले इस दुनिया में रहे लेकिन जो भक्ति करे
उसके मन में सांसारिक मोहमाया नही होना चाहिए।

आप बिना गोता लगाये मणि प्राप्त नहीं कर सकते। भक्ति में
डुबकी लगाकर और गहराई में जाकर ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

जब तक ईश्वर की दी हुई शक्तियों का सदुपयोग नहीं करोगे तो वह अधिक नहीं देगा।
ईश्व कृपा पाने के लिए भी पुरुषार्थ आवश्यक है।

ईश्वर से प्रार्थना है कि धन, नाम और प्राणी सुख जैसी क्षणभंगुर चीजों से
आपका लगाव दिन-ब-दिन कम होता जाए।

सच बोलने के बारे में बहुत खास होना चाहिए. सत्य के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

केवल दो प्रकार के लोग आत्म-ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं:
वे जो सीखने के बोझ से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हैं, अर्थात्,
जिनके मन में दूसरों से उधार लिए गए विचारों की भीड़ नहीं है;
और जो सभी शास्त्रों और विज्ञानों को पढ़कर यह जान गए हैं कि वे कुछ भी नहीं जानते हैं।

जो मन पाखंडी है, गणना कर रहा है या तर्कशील है।
ईश्वर को ऐसे मन से महसूस नहीं किया जा सकता है।
विश्वास और ईमानदारी से, भगवान बहुत निकट है; लेकिन वह पाखंडी से बहुत दूर है।

ईश्वर को सभी मार्गों से महसूस किया जा सकता है।

अतीत में मत जाओ।

जिस तरह गंदे शीशे पर सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता,
उसकी तरह गंदे मन-विचार वाले व्यक्ति पर ईश्वर के आशीर्वाद का प्रकाश नहीं पड़ता।

आप दुनिया का भला करने की बात करते हैं। क्या दुनिया इतनी छोटी है?
और तुम कौन हो, प्रार्थना करो, कि संसार का भला करो? पहले ईश्वर को पहचानो,
आध्यात्मिक अनुशासन के माध्यम से उसे देखो। यदि वह शक्ति प्रदान करता है तो
आप दूसरों का भला कर सकते हैं; अन्यथा नहीं।

जब फूल खिलता है तो मधुमक्खियां बिन बुलाए आती है।

मैं सभी चीजों में भगवान राम को देखता हूं। आप सभी यहां बैठे हैं,
लेकिन मैं आप सभी में केवल राम को देखता हूं।

जब तक ईश्वर की दी हुई शक्तियों का सदुपयोग नहीं करोगे तो वह अधिक नहीं देगा।
ईश्व कृपा पाने के लिए भी पुरुषार्थ आवश्यक है।

आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लेने से काम और लोभ का विष नहीं चढ़ता।

जिस इंसान में लज्जा, नफरत और भय ये तीनों चीज मौजूद होती है,
वह कभी भी ईश्वर को प्राप्त नही कर सकता है अर्थात
ईश्वर की कृपा दृष्टि उस पर नही पड़ सकती।

बिना सच बोले तो ईश्वर को प्राप्त ही नही किया जा सकता है, क्योंकि सच ही ईश्वर है।

संसार का एकमात्र भगवान ही पथ प्रदर्शक और सच्ची राह दिखाने वाला है।

जब एक फूल खिलता है, तब मधुमक्खियां फूल पर बिना बुलाए आ कर बैठ जाती है,
इसी प्रकार जब हम प्रसिद्ध होते है तो लोग बिना बताए हमारा प्रशंसा करने लगते है।

जब हवा चलने लगे तो पंखे को बंद कर देना चाहिए, लेकिन जब
भगवान की कृपा दृष्टि होने लगे तो प्रार्थना और तपस्या को नही छोड़ना चाहिए।

ईश्वर सभी इंसानों में है, लेकिन सभी इंसानों में ईश्वर का ध्यान हो,
ये जरूरी नही है, इसीलिए हम लोग पीड़ित है।

अगर हम कर्म करते है, तो अपने कर्म में भक्ति का
भाव होना अत्यंत आवश्यक है, तभी वह कर्म सार्थक हो सकता है।