What is the story of Shivaratri of Sawan? What is the importance of Shivratri of Sawan?- सावन का महीना बहुत ही शुभ माना जाता है। सावन मास को भगवान शिव का माना जाता है। वैसे हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने की कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है। परंतु फाल्गुन मास के महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास के शिवरात्रि की मान्यता अधिक है। सावन मास में शिवभक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए अलग अलग तरीके से पूजा अर्चना करते हैं। जिसमें से मुख्य कावड़ यात्रा होती है। शिवभक्त अपने कावड़ से पवित्र गंगाजल को भरकर पैदल यात्रा कर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। श्रावण मास के चतुर्दशी के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करने की प्रथा पौराणिक समय से ही चली आ रही है।
कहा जाता है कि समुद्र मंथन इसी श्रावण मास में किया गया था। समुद्र मंथन के दौरान जब विश निकला तो उस विश को ना तो देवता अपने पास रखना चाहते थे और ना ही दानव। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कथा अनुसार संकट हरण भगवान शिव शंकर की आराधना करनी शुरू की। भगवान शिव ने देवताओं की कथा सुनकर उस विष का पान किया। परंतु उन्होंने उस विष को अपने शरीर के अंदर जाने से रोक दिया। उसे अपने कंठ पर ही धारण किए। इससे भगवान शिव नीलकंठ के नाम से भी जाने जाते हैं।
विषपान के पश्चात भगवान शिव को तीव्र जलन की अनुभूति होने लगी। इस जलन को कम करने के लिए देवताओं द्वारा उन पर जल अर्पित करने लगे। जिससे भगवान शिव को राहत मिली। इन पौराणिक मान्यताओं के चलते सावन मास में शिवभक्त कावड़िए से जल लाकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं।
श्रावण मास या सावन महीने की शिवरात्रि की कथा क्या है ?
एक बार ऋषियों ने व्यास शिष्य सूत जी से पूछा, हे महामुनी भगवान शिव को संतुष्ट करने वाला तथा उत्तम फल प्रदान करने वाला व्रत कौन सा है? जिसके अनुष्ठान से साधक को भोग एवं मोक्ष की प्राप्ति हो सके। कृपा कर बताएं।
सूत जी बोले हे ऋषियों आपका प्रश्न उचित है। एक समय यही बात ब्रह्मा, विष्णु तथा पार्वती जी ने भोलेनाथ से पूछी थी। इसके उत्तर में भोले नाथ बोलें मेरे बहुत से व्रत हैं जो भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। उन सभी में शिवरात्रि का व्रत सबसे अधिक बलवान है।
इसलिए भोग और मोक्ष की कामना रखने वाले सभी मनुष्यों को शिवरात्रि व्रत का पालन करना चाहिए। यह व्रत सबके लिए धर्म का उत्तम साधन है।
फिर ऋषियों ने पूछा सूत जी पूर्व काल में शिवरात्रि के उत्तम व्रत का पालन किसने किया था? और इस व्रत का पालन करने से उसे क्या फल मिला?
सूतजी पुनः बोलें ऋषियों, इस विषय में एक निषाद का प्राचीन इतिहास बताने जा रहा हूं, जो सब पापों का नाश करने वाला है।
प्राचीन समय में एक जंगल में गुरुद्रोह नाम का एक शिकारी रहता था। उसके बीवी बच्चे एवं माता पिता सब साथ रहते थे। वह बलवान एवं क्रूर स्वभाव का होने के साथ-साथ क्रूरता पूर्ण कार्यों में लिप्त रहता था। वह प्रतिदिन वन में जाकर जंगली जानवरों को मारता और ना ना प्रकार की चोरियां करते हुए अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था। उसने बचपन से ही कोई शुभ कार्य नहीं किया था। इस प्रकार वन में रहते हुए उस दुरात्मा शिकारी का बहुत समय बीत गया। तब देव योग से फागुन मास की कृष्ण पक्ष की महा फलदाई शिवरात्रि आई। वह शिकारी घने जंगल में निवास करने के कारण शिवरात्रि व्रत के बारे में नहीं जानता था।
उस दिन भी वह शिकारी प्रतिदिन के भांती जंगल में शिकार करने के लिए गया। संयोगवश उस दिन उसे कोई जंगली जानवर दिखाई नहीं दिया। और सूर्यास्त हो गया। इससे उसे बहुत दुख हुआ। वह सोचने लगा अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं,अभी तक कुछ नहीं मिला। यदि मैं खाली हाथ घर गया तो सभी की क्या दशा होगी। अतः मुझे कुछ लेकर जाना चाहिए। ऐसा सोच कर वह एक तालाब के पास जाकर खड़ा हो गया। जहां पानी में उतरने का घाट था। उसने सोचा यहां कोई ना कोई जीव पानी पीने के लिए अवश्य आएगा। मैं उसी को मार कर अपने साथ घर ले जाऊंगा। ऐसा सोच कर वह तालाब के किनारे बेल के पेड़ पर चढ़ गया। और वही जल साथ में लेकर बैठ गया। उसके मन में केवल यही चिंता थी कि कब कोई जीव आएगा, कब मैं उसका शिकार करूंगा और उसे घर लेकर जाऊंगा। इसी इंतजार में वह शिकारी भूख प्यास से पीड़ित होकर उस पेड़ पर बैठा रहा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो धूल मिट्टी और पत्तों के कारण दिखाई नहीं दे रहा था।
उस रात के पहले पहर में एक प्यासी हिरनी वहां आई जो जोर-जोर से चौकड़ी भर रही थी। उस हिरनी को देख वह शिकारी बड़ा खुश हुआ। वह शिकार के लिए अपने धनुष पर बाण चढ़ाने लगा। जैसे ही उसने बाण उठाया उसके हाथ के धक्के से थोड़ा सा जल और बेलपत्र नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिर गए। इस तरह अचानक ही उसने शिव भगवान की प्रथम पहर की पूजा संपन्न की। उस पूजा के माध्यम से शिकारी का बहुत सारा पाप नष्ट हो गया। वहां होने वाले खड़खड़ आहट की आवाज सुनकर हिरनी ने डर के मारे ऊपर देखा। शिकारी को देखते ही वह व्याकुल हो गई और बोली, हे व्याद तुम क्या करना चाहते हो सच बताओ। हिरनी की बात सुनकर वह बोला आज मेरा परिवार भूखा है। मैं तुम्हें मार कर उनकी भूख मिटाऊंगा। तब हिरनी बोली हे मनुष्य मेरे मांस से अगर तुम्हें तृप्त मिलेगा तो इससे बढ़कर महान पुण्य का कार्य क्या हो सकता है। परंतु इस समय मेरे बच्चे घर पर अकेले हैं मैं उन्हें अपनी बहन अथवा स्वामी को सौंप कर वापस आ जाऊंगी। तुम मेरा विश्वास करो। सत्य से ही धरती टिकी हुई है। सत्य से ही समुद्र अपनी मर्यादा में है।
सूत जी ने कहा कि हिरनी के ऐसा कहने पर भी जब शिकारी ने उसकी बात नहीं मानी तब वह बोली मैं तुम्हारे सामने एक ऐसी शपथ लेती हूं कि घर जाने पर मैं अवश्य ही तुम्हारे पास वापस आऊंगी। ब्राह्मण यदि वेद बेचे और तीनों काल संध्या ना करें, उसे जो पाप लगता है। पति की आज्ञा उल्लंघन करके अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने वाले स्त्रियों को जिस पाप की प्राप्ति होती है। किए हुए उपकार को ना मानने वाले, भगवान शंकर से विमुख रहने वाले, दूसरों से दूर करने वाले, धर्म को लांगने वाले तथा विश्वासघात एवं छल करने वाले लोगों को जो पाप लगता है। उसी पाप से मैं भी लिप्त हो जाऊं। यदि मैं यहां लौटकर न आऊं।
इस तरह अनेक प्रकार की शपथ खाकर जब हिरनी चुपचाप खड़ी हो गई तब वह शिकारी ने उस पर विश्वास करके कहा, अच्छा तुम अब घर जाओ। तब वह हिरनी बड़ी खुशी के साथ पानी पीकर अपने घर चली गई। इतने में ही रात का पहला पहर शिकारी के जागते हुए बीत गया।
तब उस हिरनी की बहन उसे ढूंढते हुए वहां उस तलाब में पानी पीने के लिए रुक गई। उसे देखकर शिकारी ने बान को कर्कश से खींचा। ऐसा करते हुए पहले ही की तरह शिवलिंग के ऊपर जल और बेलपत्र गिरे। भगवान भोलेनाथ की दूसरे पहर की पूजा संपन्न हुई। वहीं हिरनी ने उसे बाण खींचते हुए देख लिया। पूछा कि यह तुम क्या कर रहे हो? तब शिकारी ने कहा मैं अपने भूखे परिवार को तृप्त करने के लिए तुम्हें मारूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली, हे शिकारी मेरा देह धारण सफल हो गया है क्योंकि इस नित्य शरीर के द्वारा तुम्हारी तृप्ति होगी। परंतु मैं यहां अपनी बहन को ढूंढने आयी हूं और घर में उसके छोटे-छोटे बच्चों को अकेले छोड़ कर आयी हूं। मैं घर जाकर बच्चों को अपने बहन या उसके पति को सौंप दूं तो मैं वापस तुम्हारे पास आ जाऊंगी। हिरनी की बात सुनकर शिकारी बोला मैं तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं करता। मैं तुम्हें अवश्य मारूंगा। यह सुनकर हिरनी भगवान शिव की शपथ लेकर बोली यदि मैं वापस ना आऊं तो मैं अपना सारा पुण्य हार जाऊं। क्योंकि जो वचन देकर पलट जाते हैं वह अपने पुण्य को हार जाते हैं। हिरनी की बात सुनकर शिकारी बोला अच्छा ठीक है जाओ लेकिन जल्दी वापस आना। तब वह हिरनी जल पीकर वापस चली गई। इतने में ही रात का दूसरा पहर शिकारी के जागते हुए ही व्यतीत हो गया।
तीसरा पहर शुरू हो जाने पर उसने एक हिरण देखा। वह बड़ा तंदुरुस्त था। उस हिरण को देखकर शिकारी बहुत ही प्रसन्न हुआ और वह धनुष पर बाण रखकर उसे मानने के लिए तैयार हो गया। ऐसा करते हुए पुण: उस शिवलिंग पर बेलपत्र एवं जल गिरे। इस प्रकार भगवान शिव की तीसरे पहर की पूजा भी संपन्न हो गई। इस तरह भगवान भोलेनाथ ने उस शिकारी पर अपनी दया दिखाई। पत्तों की आवाज सुनकर हिरण शिकारी की ओर देखा और पूछा यह तुम क्या कर रहे हो? शिकारी ने हिरण को बताया मैं तुम्हारा शिकार करना चाहता हूं और अपने परिवार का पेट भरना चाहता हूं। यह सुनकर हिरण बहुत ही प्रसन्न हुआ। हिरण शिकारी से बोला मैं धन्य हूं मेरा जन्म सार्थक हुआ। मेरा तंदुरुस्त होना सफल हो गया। क्योंकि मेरे शरीर से आपकी तृप्ति होगी जिसका शरीर परोपकार के काम नहीं आता उसका सब कुछ व्यर्थ होता है। परंतु एक बार मुझे वापस जाने दो मैं अपने बालकों को उनकी माता को सौंप कर और उन सभी को धीरज बंधाकर यहां वापस आ जाऊंगा। ऐसा कहने पर शिकारी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसका ह्रदय शुद्ध हो गया और उसके सारे पाप पुंज नष्ट हो गया। वह बोला जो भी यहां आए वह तुम्हारी तरह बातें बना कर चले गए। परंतु अभी तक नहीं लौटें। हिरण तुम भी इस समय संकट में हो इसलिए झूठ बोलकर यहां से चले जाना चाहते हो। फिर आज मेरा जीवन निर्वाह कैसे होगा। तब हिरण ने कहा, हे शिकारी जिसकी वाणी झूठी होती है उसका पुण्य उसी क्षण नष्ट हो जाता है। सारा ब्रह्मांड सत्य पर ही टिका हुआ है। उसकी बातें सुनकर शिकारी बोला जाओ तुम भी जाओ। परंतु हिरण पानी पीकर चला गया।
जब वह अपने घर पहुंचा तो उसने यह बात अपने परिवार जनों को बताइए। हिरण की बात सुनकर दोनों हिरणी ने अपने साथ घटित सारी बात बताई। वे आपस में सभी के वृतांत को सुनकर सत्य के धागे से बंधे हुए उन्होंने यही निश्चय किया उन्हें वहां अवश्य जाना चाहिए। इस निश्चय के पश्चात वे तीनों अपने बालकों को आश्वासन देकर जाने को लेकर उत्सुक हो गये। उस समय बड़ी हिरनी ने कहा स्वामी आपके बिना मेरे बच्चे कैसे रहेंगे। पहले मैंने ही वहां जाकर प्रतिज्ञा की है। इसलिए वहां केवल मुझे जाना चाहिए। यह सुनकर छोटी हिरनी बोली बहन मैं तुम्हारी सेविका हूं इसलिए वहां शिकारी के पास मुझे जाना चाहिए।
दोनों हिरणी की बात सुनकर हिरण बोला तुम दोनों यहीं रहो ।बच्चों की सुरक्षा माता सबसे अधिक कर सकती है। वे दोनों अपने पति से प्रेम पूर्वक बोली, हे प्रभु पति के बिना यह संसार बेकार है। ऐसा जीवन धिक्कार है। तब उन तीनों ने बच्चों को सांत्वना देकर उन्हें पड़ोस के यहां सौंप दिया। वे सभी शीघ्र ही शिकारी के पास जाने के लिए निकल गए। उन्हें जाते हुए देखकर उनके बच्चे भी पीछे पीछे चले गए। उन्होंने यह निश्चय किया कि जो गति हमारे माता-पिता की होगी वही हमारी भी होगी।
उन सब को एक साथ आया हुआ देखकर शिकारी बहुत खुश हुआ। उसने अपने धनुष पर बाण रखा। उस समय फिर से जल और बेलपत्र शिवलिंग के ऊपर गिरे और शिव भगवान की चौथे पहर की पूजा संपन्न हुई। परिणाम स्वरूप शिकारी का सारा पाप तत्काल ही भस्म हो गया। इतने में दोनों हिरनिया और हिरण बोलें हे शिकारी हमारे शरीर को ग्रहण कर हमारे जीवन को सार्थक करो। तीनों की बात सुनकर शिकारी हैरान रह गया। शिव पूजा के प्रभाव से उसे ज्ञान प्राप्ति हुई। उसने सोचा यह ज्ञान हीन पशु होकर भी धन्य है, सर्वदा आदरणीय हैं, जो अपने शरीर से ही परोपकार में लगे हुए हैं। मैंने मनुष्य जन्म पाकर भी कोई पुरुषार्थ नहीं साधा । हमेशा दूसरों को कष्ट और पीड़ा ही प्रदान की है। ऐसे पाप करने से मेरी क्या गति होगी। मेरे जीवन को धिक्कार है। इस प्रकार ज्ञान संपन्न होकर शिकारी ने अपने बाण को रोक लिया। और कहा हे श्रेष्ठ तुम यहां से चले जाओ। तुम्हारा जीवन धन्य है।
जैसे ही शिकारी ने यह शब्द बोले उसी समय भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए। उन्होंने शिकारी को अपने अलौकिक रूप का दर्शन कराएं। भगवान ने शिकारी से प्रेम से कहा हे भीम मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं। वर मांगो। शिकारी भगवान शिव के अलौकिक रूप को देखकर प्रसन्न हो गया और बोला मैंने सब कुछ पा लिया। कहते हुए वह भगवान के चरणों के आगे गिर पड़े।
भगवान शिव शिकारी के इस भाव से प्रसन्न हुए और उसे ‘गूरू’ नाम देकर कृपा दृष्टि से देखने लगे। वह बोले हे व्याध आज से तुम सिंहवेदपुर में उत्तम राजधानी का आश्रय लेकर दिव्य भोग का आनंद लोगे। तुम्हारे वंश की वृद्धि निर्विघ्न रूप से होती रहेगी। सभी देवता एवं ऋषि मुनि तुम्हारी प्रशंसा करेंगे। मेरे भक्तों पर स्नेह रखने वाले भगवान श्री राम एक दिन निश्चय ही तुम्हारे घर पधारेंगे। और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम मेरे सेवा में मन लगाकर दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त करोगे। उसी समय वह सब मृग मृगयोनी से मुक्त होकर दिव्य शरीर धारण कर के दिव्य विमान से दिव्यलोक चले गए।
सावन शिवरात्रि की पूजा विधि क्या है (What is the worship method of Sawan Shivratri)?
सावन मास के चतुर्दशी को प्रातः काल उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त हो जाएं।
फिर अपने घर के पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें। यहां भगवान शिव जी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।
अब भगवान शिव को सफेद चंदन, गंगाजल, गाय का दूध, बेलपत्र, शमीपत्र, भांग, धतूरा और सफेद फूल अर्पित करें।
इसके साथ ही माता पार्वती को अक्षत, फूल, धूप, फल और सुहाग का सामान चढ़ाएं। इसके बाद भगवान को सात्विक आहार का भोग लगाएं। इस दिन मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग का जलाभिषेक करें। शिवलिंग का गंगाजल, शहद, गाय का दूध एवं घी से रुद्राभिषेक करें। इसके बाद शिवलिंग पर सफेद चंदन,फूल, धतूरा, बेलपत्र, फल अर्पित करें एवं अगरबत्ती और दिए जलाएं। साथ ही शिव स्तुति, शिवाष्टक या शिव पंचाक्षर स्रोत मंत्र का जाप करें। और भोलेनाथ से आशीर्वाद प्राप्त करें।
सावन शिवरात्रि का महत्व क्या है ?
सावन शिवरात्रि के दिन शिव की पूजा करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु सावन के महीने में योग निद्रा में जाते हैं, तो सृष्टि का संचालन करने के लिए भगवान शिव उत्तरदायित्व लेते हैं। इसीलिए सावन मे शिव की पूजा महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करने से जीवन में सौभाग्य समृद्धि प्राप्त होती है। भक्तों की सभी मुश्किले समाप्त हो जाती है।
ऐसा मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से, शिवलिंग पर जल चढ़ाने से और शिव की पूजा अर्चना विधि विधान के साथ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। भगवान शिव स्वास्थ्य , सौभाग्य , सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं।
कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और वैवाहिक जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती है। कुंवारी कन्याओं को शिवलिंग का जलाअभिषेक करने से मनवांचित फल की प्राप्ति होती है।
सावन मास शिवरात्रि और महाशिवरात्रि (Sawan month Shivratri and Mahashivratri) में क्या अंतर है ?
वैसे कई लोग महाशिवरात्रि को ही सावन शिवरात्रि भी बोलते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ये दोनों ही पर्व अलग-अलग हैं। शिवरात्रि हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर आती है।ठीक वैसे ही सावन मास शिवरात्रि सावन महीने के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि साल में एक ही बार मनाई जाती है। फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए इस पर्व को शिव और पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।वैसे तो भोले शंकर की पूजा करने के लिए हर दिन शुभ होता है, लेकिन शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का अलग ही महत्व होता है।
FAQ
सावन मास शिवरात्रि कब होती है ?
सावन शिवरात्रि सावन महीने के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाता है।
सावन शिवरात्रि और महाशिवरात्रि क्या एक ही है ?
नहीं। महाशिवरात्रि फागुन महीने के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाता है। जबकि सावन शिवरात्रि सावन महीने के चतुर्दशी को मनाया जाता है।
कावड़ यात्रा कब होती है ?
कावड़ यात्रा सावन महीने में भगवान शिव के ऊपर पवित्र जल अर्पण करने के लिए किया जाता है।